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Source Siddharth Sonkar

जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के मुख्यालय पर रविवार तड़के हुए आतंकी हमले में सेना के 17 जवान शहीद हो गए है, रक्षा मंत्री श्री नगर दौरे से लौटकर प्रधानमंत्री को हमले की रिपोर्ट सौंप चुके है तो वंही गृह मंत्रालय एवम ७आरसीआर में एक उच्चस्तरीय हो रही है। इस बैठक के बाद क्या निष्कर्ष निकलेगा और क्या कारवाही होगी ये तो समय तय करेगा। सूत्रों की मानी जाए तो पाकिस्तान की नापाक हरकत के सबुत गृहमंत्रालय के पास है की इसमे पाकिस्तान का ही हाथ हैं वंही पाकिस्तान इस बात को एकसिरे से नकारता आ रहा हैं। प्रधानमंत्री मोदी की मानी जाय तो अब समय आ चुका है कि पाकिस्तान को कूटनीतिक तरीके से अंतरराष्ट्रीय समाज के सामने अलग-थलग किया जाए क्योंकि सत्ता संभालने के बाद सेना के कैंप पर होने वाला यह दूसरा हमला है। ऐसे में क्या मोदी की ओर से जवाबी कार्रवाई को लेकर स्वीकृति मिलेगी सेना को?, क्या उड़ी की घटना के बाद सरकार को बड़ा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है?। अगर करवाई होती है तो दहशत गर्दी के साथ कौन कौन है और अलग अलग कौन से देश होंगे। ऐसे ही कुछ ज्वलंत सवालो पर क्या रुख अपनाएगा देश , आइये देखते है विकल्प की तरफ।

"पागलपन" आखिर क्या हैं "एक ही काम को बार बार करतें रहना और उम्मीद करना की हर बार नतीजे अलग किस्म के बरामद होंगे " यह सवाल और जवाब वैज्ञानिक अल्बर्ट आईन्सटीन के। इस पैमाने पर अगर राष्ट्र की सुरक्षा नीति गलियारों में बर्तमान आस्था के आधार पर अगर परखा जाए तो क्या आतंकवाद का पागलपन और शहादत दोनों एक साथ चल सकती हैं. भारत में पडोसी मुल्क के द्वारा किये जा रहे लंबे समय से एक बाद एक दहशत गर्दी के उदाहरण है, संसद भवन, सेना मुख्यालय,गेट वे ऑफ इंडिया, मंदिर, मस्जिद,कोर्ट-कचहरी, हाट, बाजार, बस एवम ट्रेन। आतंकी सभी जगहों पर धमाके कर चुके दहशत के लिए अब और बचा क्या है ?. अब आगे आखिर क्या होना चाहिए तो जवाब हर व्यक्ति का अलग होगा जो आक्रोश, भय, बदला, कूटनीति और भविष्य के मिले जुले सवालो और जवाब के इर्दगिर्द होगा. अगर हो रहे दहशत गर्दी का मार्मिक एवम मानवीय पक्ष को नजर अंदाज इसके बीच नही कर सकते। जब देश का एक भी जवान शहीद होता हैं तब केवल एक जवान ही शहीद नही होता। एक बुजुर्ग बाप अपने बुढ़ापे की लाठी भी खोता हैं, एक नवविवाहिता का सुहाग भी उजड़ता है, एक अबोध बालक के सर से पिता का साया भी उठता है जिस मर्म को वो शायद कभी महसूस भी नही कर पाए. सीमा पर हो रहे शहीदों के लिए खुले स्वर में कड़ी निंदा कर देने मात्र से एक बेटा खोने वाले बाप की मनोदशा समझना सहज नही होगा। अगर थोड़ी देर के लिए ही सही अगर जांबाजो का सीमा पर हो रहे श हादत और सुरक्षात्मक रवैया को कूटनीति मानकर चुप रहना पड़े या यूँ कँहे सहना पड़े तो गुस्सा स्वाभाविक है. ये स्थिति और भी भयानक तब हो जाती हैं जब सीमा पर सैनिको के हाथ बँधे हो और सीमा के अन्दर सेना में जाकर देश सेवा का जज्बा लिए युवाओ का मनोबल टूट रहा हो। ऐसे में क्रिया की प्रतिक्रिया को न देखते हुए आक्रोश और भी बढ़ जाना स्वाभाविक है। मैं स्वय एक आमजन भारतीय की तरह आक्रोश में हूँ, दिल करता हैं नेस्तो नाबूद कर देना चाहिए पाक को, अगर मेरे हाथ में सत्ता होती तो शायद यही करता । फिर थोड़ी देर बाद क्षणिक आक्रोश के बाद युद्ध विराम के बाद हालात क्या होंगे परिणाम चाहे जो भी निकले फिर सोचता हूँ " फिर क्या युद्ध ही विकल्प है ?".



अगर मैं किसी विफल आदमी या राष्ट्र को अगर क्षणिक आक्रोश में दो चार लात गिनकर मार दूं या हमला कर भी दूं तो क्या उसे नेस्तनाबूद किये बगैर मामला हल हो जायेगा ?. अगर इसपर मेरी व्यक्तिगत् राय पूछी जाए तो नही ,मुझे तो नही लगता। जैसा की सभी अवगत है, अमेरिका ने तालिबान के खिलाफ बहुराष्ट्रीय सेनाओं के साथ सालों अभियान चलाया या अभी भी चला रहा हैं. पर अन्ततः अमेरिका को नतीजा क्या मिला? वे और मजबूत बनकर उभरे। फिर क्या करे ? मुंह बाए खड़ा हो गया एक और प्रश्न हमारे समक्ष " फिर, तब क्या इनलोगों की यह दुष्टई यूँ ही चलते रहने दी जाये?". अगर मेरी व्यक्तिगत राय मांगी जाय तो मेरा व्यक्तिगत जवाब रहेगा "नही". क्योंकि क्या हम वाकई युद्ध के लिए तैयार है कुछ सवालो साथ: क्या हमारी करेंट आर्थिक हैसियत हैं युद्ध की विभीषिका को अफ़्फोर्ड करने की? क्या हमारी राजनितिक विल इस मुद्दे पर एकजुट हैं, क्या हमारा सुरक्षा एवम ख़ुफ़िया तंत्र तैयार हैं युद्ध की स्थिति के लिए?, क्या अंतर राष्ट्रीय सम्बन्ध आपको इस कदम की अगुवाई करने पर आपके साथ खड़ा होगा?, क्या पड़ोसी इस्लामिक राष्ट्र अफनिस्तान, ईरान, बांग्लादेश सहित विश्व के लगभग सारे देश क्या इस आतंकवाद की लड़ाई में आपके साथ है? ऐसे में आने वाले दिनों में पाकिस्तान का अगला कदम एवमं रुख क्या होगा?, क्या आप स्वय तैयार हैं युद्ध की स्थिति के लिए?. एक अहम् प्रश्न युद्ध विराम के बाद "राउंड द टेबल निगोसियेशन" के लिए क्या आप तैयार है किसी भी कीमत के लिये?, क्या आप दो दशक पीछे जाने के लिए तैयार है, स्थिति जो भी हो. अगर हाँ तो उद्घोष कीजिये एक और विश्व युद्ध की क्योंकि ये मत समझिये ये युद्ध सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच होगा। 



फिर एक आमनागरिक की हैसियत से कूटनीतिक रणनीति पर अमल कीजिये, हम अपने दुश्मन को कभी भी कमजोर नही समझना चाहिए। इसलिए थोड़े अलग नजरिया से देख रहा हूँ ये देश में पैदा की जा रही अशांति का स्वरूप कंही पड़ोसी मुल्क के कूटनीति का हिस्सा तो नही हैं. क्योंकि जितने दुश्मन बाहर हैं उतने ही दुश्मन अंदर भी हैं जो असुरक्षा की भावना से बन बैठे हैं और एक अलगाव वादी संगठन का रूप धारण कर चुके हैं. पाकिस्तान इस बात को भली भाँति समझता हैं इसलिए बीते दशक से वो अपनी सेनाये एक साथ ना भेजकर चरमघाती लड़ाको को पाँच-सात के समूह में भेजती रहती हैं. वी जिस उद्दयेश्य से आते है दहशत गर्दी के लिए वो कामयाब भी होते हैं. कंही ये पडोसी मुल्क का दूरगामी दुष्ट धर्मिता तो नही?. पाकिस्तान कई बार आमने सामने की युद्ध से मुंह की खा चूका है, जबरदस्त शर्मिंदगी से दोचार होते हुए एक बड़ा हिस्सा भी उसे गवाना पड़ा है तो वो आमने सामने की लड़ाई कभी नही चाहेगा। आप जिसके लिए लड़ाई की सोच रहे है, उन कश्मीरीयो का क्या रुख होगा। कंही ये दहशत गर्दी पडोसी मुल्क की आढ़ में किसी और सह में युद्ध के लिए उकसावा किसी और प्लानिंग का हिस्सा तो नही है?. अगर पड़ोसी मुल्क की ये योजनाए अपनी बखूबी काम कर रही हैं, उनके इस मानसिक दबाव से जवानों एवम युवाओ के अंदर का मनोबल टूट रहा हैं या यूँ कह लीजिये आक्रोश अपने चरम पर होना स्वाभाविक है। बाकी रही सही कसर यंहा की राष्ट्रिय, क्षेत्रीय, अलगवावादी राजनितिक पार्टिया एवम मिडिया पूरी कर देती हैं. इस तरह के नकारात्मक रिपोर्टिंग से होने वाले खतरों का बिना अंदाज लगाए। हमारी सुरक्षा व्वयस्था की समस्या कुछ समूह में आये दहशत गर्दो को जहनुम पंहुचा देने मात्र से खत्म होने वाली नही दिखती क्योंकि वो जिस मकसद यंहा आ रहे हैं उसे वो मुकमल अपनी मंजिल तक पहुचा रहे हैं. हमे वक्त के साथ हमे अपनी अपनी आंतरिक कमजोरी को समय रहते दूर करनी पड़ेगी, अपने खुफिया तंत्र को और भी सुविधा संपन्न एवम मजबूत करनी होगी। इस काम के लिए भारत को अपने मित्र देश इजराइल, रूस, फ़्रांस और अमेरीका जैसे देशो से सहयोग लेकर ख़ुफ़िया तंत्र को और पुख्ता एवम मजबूत करनी होगी। हमे समय के साथ अपने सुरक्षा तंत्र एवम ख़ुफ़िया तंत्र को और पुख्ता करना पड़ेगा ठीक वैसे ही जैसे पड़ोसी मुल्क चीन ने अपने सुरक्षा स्तर को मजबूत कर लिया हैं उतने ही मौजूद सुविधा से. भारत आने वाले दशक में दुनियाभर में रक्षा प्रौद्योगिकी में भी आत्मनिर्भरता ला सकता है, जैसा की कुछ बीते महीनो में उदाहरण स्वनिर्मित हथियार एवम बिमान सैनिक बेड़ो में शामिल करके दिया. हालात अगर बुरे से बुरे भी हुए तो युद्ध की स्थिति में हमे कदापि ये भी नही भूलना चाहिए की स्वयं पाकिस्तान एक परमाणु राष्ट्र है. भारत सरकार के द्वारा चलायी जा रही बहुत सी योजनाए ऐसी हैं जिसमे इतनी क्षमता हैं की अगर वो सफल होती हैं तो आने वाले दशक में देश की प्रति व्यक्ति आय भी सम्मानजनक हो जायेगी। देश की आर्थिक स्थिति भी युद्ध की बिभीषिका के लिए तैयार हो जाये इसलिए हमे कम से कम तब तक ज़लालत सहकार आक्रोश के घुट को पीकर भी भारत के सुरक्षात्मक और कूटनीतिक उपायों पर ही भरोसा करना होगा क्योंकि चीन और पाकिस्तान तो चाहते ही हैं भारत को युद्ध में फांसकर उसे आगे बढ़ने से रोका जाये। अब सुरक्षा की दृष्टि से अहम् सवाल ये उठता है कि हमारे १२५ करोड़ आबादी वाले देश के मुखिया माननीय प्रधानसेवक, गृहमंत्री और रक्षामंत्री की तिकड़ी क्या कदम उठाती है आने वाले अगले दो तीन दिन के चुनोउतियो के मद्देनजर भी ये बहुत महत्वपूर्ण हैं !



ये मेरे व्यक्तिगत विचार है कड़े निंदा के साथ, आप असहमत भी हो सकते है।


 
 
 

Target Communities : General Public

Why it is important: International Relations

What is the end objective of the news?: Thought Provoking

What needs to be done to meet the objective?: Take home massage

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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